अब जाग जाओ सिद्धार्थ शुक्ला द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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अब जाग जाओ

#अब_जाग_जाओ_भाग१

हल्की ठंड के मौसम में जब साफ आसमान होता है तो चंद्रमा की चांदनी अपना अलौकिक रूप लिए बरस रही होती है । चांदनी रात में किसी बगीचे में टहलना एक अनोखे सुख से भर देता है। जब आपके पैर सूखे पत्तों पर पड़ते हैं तो पत्तो से उठी आवाज़ आपके मौन को और गहन कर देती है। तब आपको एहसास होता है कि फूलों और विशाल वृक्षो के साथ साथ इन सूखे पत्तों का भी बग़ीचे के सौंदर्य में अपना महत्व है।

मैं उन भाग्यशाली व्यक्तियों में से हूं जिनका जन्म भारत मे हुआ और भारत मे ही रहते हैं। पूनम की रात में उस बगीचे में टहलते हुए मैं अपने ही विचारों में मग्न था, रातरानी के फूलों की खुशबू आपको अपने से बांध लेती है और आप परमात्मा के प्रति अहोभाव से भर उठते हैं। कि तभी बगीचे के एक कोने में सरकारी बैंच पर एक नौजवान बैठा दिखा। कंधे तक खुले केश, चौड़ा सीना , माथे पर ऐसा तेज की आंखें चकाचौंध हो जाएं , शरीर सफेद वस्त्रों में लिपटा , भुजाएं मानो किसी बरगद के पेड़ की मजबूत टहनियां हों। किंतु मुख पर विचलित कर देने वाली उदासी भी थी। मैं एक टक मन्त्रमुग्ध उस नौजवान को देख रहा था , ऐसा दिव्य स्वरूप व्यक्ति मैंने पहले कभी नही देखा था।

"आप इतने उदास क्यों है मान्यवर और इस बगीचे में अकेले ऐसे क्यों बैठे हैं?" मैंने युवक के पास जाकर उनके कंधे पर हाथ रखते हुए पूछा। हाथ रखने से पहले मैं थोड़ा घबरा भी रहा था मगर फिर लगा जैसे मानो कोई अपना ही है और ये पूछना मेरा कर्तव्य भी बनता है और शिष्टाचार भी।

उन कंधों को छूते ही मुझे ऐसी शीतलता का अनुभव हुआ जिसका शब्दो मे वर्णन असंभव है , मैं एक अनोखी ऊर्जा का अनुभव कर रहा था। ऐसी ऊर्जा जो आपमे स्थित किसी भी नकारात्मक पहलू को भेदने की क्षमता रखती हो एवम आपका सम्पूर्ण व्यक्तित्व स्पर्श मात्र से ही सकारात्मक ऊर्जा से भर जाता हो

"बैठो सिद्धार्थ, मेरे पास बैठो" युवक ने मुझसे कहा , उन्हें मेरा नाम पहले से पता था जान कर मुझे आश्चर्य हुआ साथ मे ये भी पक्का हुआ कि ये कोई साधारण मनुष्य नही कोई पुण्यात्मा ही हैं। उनके मुख से अपना नाम सुनते ही ऐसा लगा जैसे मैं किसी अनजान व्यक्ति से नही बल्कि ऐसे व्यक्ति की दिव्यवाणी सुन रहा हूँ जिसे मैं इस जन्म ही नही कईं कईं जन्मों से जानता हूँ। मानो अपने मुख से उनका मेरा नाम लेना ही मेरा जीवन धन्य कर गया हो।

"आप कौन हैं? " मेरे हाथ स्वतः ही उनको प्रणाम करने के लिए उठ गए एवम मुख से ये प्रश्न फूट पड़ा। उनकी आंखों में मानो सैकड़ो ज्वालामुखी दहक रहे हों मगर फिर भी बर्फ की शीतलता उनमे विद्यमान थी । ऐसी दृष्टि जो समस्त प्रश्नों को गिरा देने में पूर्णतया सक्षम थी । माँ की ममता एवम पिता के समर्पण का अद्भुत भाव उनकी आंखों से छलक रहा था। मेरी आँखों मे आँसू आने को थे जिन्हें छिपाने का मैं भरसक प्रयास कर रहा था। साथ कि मुझे इस बाद का भी एहसास हो रहा था कि हो न हो वो दिव्यपुरुष भी किसी कारणवश पीड़ा से ग्रसित है।

कुछ क्षण मेरी आँखों मे देखने के पश्चात वो युवक हौले से मुस्कुराया और बोला - "मैं , भगत सिंह"

क्रमशः

#अब_कहानी_शुरू_होगी ...

~ सम्पूर्ण सिद्धार्थ